ओम श्री सदगुरू देव भगवान की जय

न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते।।
                    प्रभु न तो भूत प्राणियों कर्तापन को, न कर्मो को और न कर्मफलों का संयोग बैठाता है, बल्कि स्वभाव में स्थित प्रकृति के दबाव के अनुसार ही सभी बरतते हैं। जैसी जिसकी प्रकृति सात्विक, राजसी अथवा तामसी है, उसी स्तर से वह बरतता है। प्रकृति तो लम्बी चौड़ी है लेकिन आपके ऊपर उतना ही प्रभाव डाल पाती है, जितना आपका स्वभाव विकृत अथवा विकसित है।
                    प्रायः लोग कहते हैं कि करने कराने वाले तो भगवान हैं, हम तो यंत्रमात्र हैं। हमसे भला करावें अथवा बुरा। किन्तु योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं कि न वह प्रभु स्वयं करता है, न कराता है और न वह जुगाड़ ही बैठाता है। लोग अपने स्वभाव में स्थित प्रकृति के अनुरूप बरतते हैं। स्वतः कार्य करते हैं। वे अपने आदत से मजबुर होकर करते हैं, भगवान नहीं करते। 
ओम श्री सदगुरू देव भगवान की जय ॐ ॐ ॐ