साधक का अर्थ है जो सत्य को समझ जाय

शिव -सूत्र 
संसार के सम्मोहन और सत्य का आलोक, 
      ओशौ, 


          एक आदमी ने एक नया बंगला खरीदा। बगीचा लगाया। फूल के बीज डाले। पौधे भी आने शुरू हो गए, लेकिन साथ -साथ धास -पात भी उगा। वह थोडा चिंतित हुआ। उसने पडोसी मुल्ला नसरूददीन से पूछा कि कैसे पहचाना जाए कि क्या धास -पात है और क्या असली पौधा है? नसरूददीन ने कहा, सीधी तरकीब है! दोनों को उखाड लो। जो फिर से उग आए, वह धास -पात है। 
               व्यर्थ की एक खूबी है कि --उखाडो, उखाडने से कुछ नहीं मिटता। उखाडने से सार्थक तो खो जाएगा, व्यर्थ फिर उग आएगा। सार्थक को बोओ, तब भी पक्का नहीं कि फसल काट पाओगे, क्योंकि हजार बाधाएं है। व्यर्थ को बोओ ही मत, तो भी फसल काटोगे, उखाड -उखाड कर फेंको, तो और और उग आएगा।व्यर्थ को बनाने में श्रम नहीं करना पडता, सार्थक को बनाने में बडा श्रम करना पडता है। इसलिए तुमने व्यर्थ को चुना है। वह अपने से उग रहा है। 
       किसी को चोर होने के लिए मेहनत नहीं करनी पडती, चोरी धास -पात की तरह उगती है। किसी को कामवासना से भरने कै लिए कोई श्रम करना पडता है? कोई प्रार्थना, कोई योग, कोई साधना? वह धास -पात की तरह उगता है। क्रोध करने के लिए कहीं सीखने जाना पडता है किसी विद्यापीठ में? नही, वह धास-पात की तरह हैं। 
        ध्यान सीखना हो तो कठिनाई शुरु होती हैं। प्रेम सीखना हो तो बडी कठिनाई शुरू होती है। मोह बडता है अपने आप धास -पात की तरह। प्रेम श्रम मांगता है। और प्रेम को अगर लाना हो तो धास -पात को पृतिक्षण उखाड कर फेंकना पडे, नहीं तो धास -पात उस सबको ढाक लेगा छिपा लेगा। 
        व्यर्थ की एक खूबी है कि वह तुमसे श्रम नहीं मागंता, तुम आलसी बने रहो, वह अपने आप बडता है। वह तुम्हें मृत्यु के आखरी क्षण तक पकडे रहैगा। 
     साधक का अर्थ है, जिसने सार्थक की खोज शुरू की। सार्थक को पाना यात्रा है ---पर्वत की तरफ  ऊँचाई की तरफ। व्यर्थ को पाना लुढकने जैसा है, जैसे पत्थर पहाड़ से लुडकता हो, वह अपने आप ही चला आता है। गुरूत्वाकर्षण उसे नीचे ले आता है, कुछ करना नहीं पडता। 
       तुमने अब तक जीवन में कुछ नहीं किया है, इसीलिए तुम व्यर्थ हो। तुम कहोगे, नहीं, ऐसी बात नहीं। मैंने धन कमाया। मैं पद -प्रतिष्ठा पर पहुंचा। मैंने बडी उपाधियां इक्कठी की है। 
    फिर भी मैं तुमसे कहता हूं कि वह सब तुमने किया नहीं, वह धास-पात की तरह अपने आप बडा है। और अगर गौर से तुम भीतर विश्लेषण करोगे तो तुम्हें भी दिखाई पड जाएगा कि धन कमाने कै लिए तुमने कुछ किया नहीं, धन की आकांक्षा धास -पात की तरह भीतर थी, वह बड गई है। तुमने धर बनाने कै लिए कुछ किया नहीं, वह वासना तुम्हारे भीतर धास-पात की तरह बडी है। वह मृत्यु के आखरी क्षण तक तुम्हें पकडी रहैगी। 
    साधक का अर्थ है, जो इस सत्य को समझ जाए कि जो अपने आप बड रहा है, वह व्यर्थ ही होगा, 
             मुझे कुछ बोना पडेगा।