जौनपुर। रामनगर विकास खण्ड के डौडी ग्राम प्रधान अनिल सिंह से शिष्टाचार भेंट के दौरान शिष्टाचार है क्या के विषय पर बातचीत हुई तो उन्होंने कहां कि शिष्ट या सभ्य पुरुषों का आचरण शिष्टाचार कहलाता है । दूसरों के प्रति अच्छा व्यवहार, घर आने वाले का आदर करना, आवभगत करना, बिना द्वेष और नि:स्वार्थ भाव से किया गया सम्मान शिष्टाचार कहलाता है ।
शिष्टाचार से जीवन महान् बनता है । हम लघुता से प्रभुत्ता की ओर, संकीर्ण विचारों से उच्च विचारों की ओर, स्वार्थ से उदार भावनाओं की ओर, अहंकार से नम्रता की ओर, घृणा से प्रेम की ओर जाते हैं । शिष्टाचार का अंकुर बच्चे के हृदय में बचपन से बोया जाता है । छात्र जीवन में यह धीरे-धीरे विकास की ओर अग्रसर होता है ।
शिक्षा समाप्त होने पर और समाज में प्रवेश करने पर यह फलवान् होता है । यदि उसका आचरण समाज के लोगों के प्रति घृणा और द्वेष से भरा हुआ है, तो वह तिरस्कृत होता है, साथ ही उन्नति के मार्ग बंद होने प्रारम्भ हो जाते हैं, उच्च स्तर प्राप्त करने की आकाक्षाएं धूमिल हो जाती हैं । इसके विपरीत मधुरभाषी शिष्ट पुरुष अपने आचरण से शत्रु को मित्र बना लेता है । उन्नति के मार्ग स्वत: खुल जाते हैं ।
विनम्रता शिष्टाचार का लक्षण है । किसी के द्वारा बुलाए जाने पर हाँ जी, नहीं जी, अच्छा जी कहकर उत्तर देना चाहिए । घर आए मेहमानों का मुस्कराकर स्वागत करना उनका अभिवादन करना शिष्टाचार है । रेलगाड़ी या बस में वृद्ध, औरतों, बच्चों को सीट देना, अन्धों को सड़क पार करवाना, दूसरों की बातों में दखल न लेना, रोगी को अस्पताल ले जाना, दूसरों के मामलों में रुचि न लेना, दु:खी व्यक्ति को सान्त्वना देना, कष्ट में मित्र की सहायता करना शिष्टाचार है ।
शिष्टाचार के विपरीत आचरण जैसे- दूसरों को देखकर अकारण मुस्कराना, दूसरों की बात काटकर अपनी बात कहना, दुर्घटना से घायल हुए व्यक्ति को वहीं छोड़कर आगे बढ़ जाना, पर निन्दा में रुचि रखना अशिष्टता है।